असफलता में क्या करे | Blog article
कई बार, जीवन में एक मुकाम ऐसा भी आता है, जब हम ख़ुद को बहुत निराश, थका-थका
सा और कमज़ोर महसूस करते है! बहुत बार ऐसे विचारो के पीछे हमारी शारीरिक, मानसिक या
आर्थिक परिस्थितिया, एक कारण होती है! कई बार हमें लगता है की हमारी सारी मेहनत
कोई भी अच्छा परिणाम नहीं ला पा रही है, या फिर हम सोचने लगते है की इन सब बुरी
परिस्थियों को बदलने के लिए हमारे पास कोई रास्ता ही नहीं है! जबकि असलियत में ऐसा
कभी नहीं होता! रास्ते तो अनेक होते है परन्तु अपनी निराशा से उपजे आसुओ की धुद्लाहत
में शायद वो हमे दिख नहीं पाते!
अगर आप भी कुछ ऐसी परिस्थियों का सामना कर रहे है या कभी कर चुके है, तो ये
उपाय शायद आपके कुछ काम आ सके:
- थोड़ा आराम करिये: सबसे पहले अपने आपको उस लगातार चिन्ता करते रहने और निराश रहने कि आदत से बाहर निकालिये! उसके लिए पहला क़दम है आराम करना! हर एक चीज़ को बदलने में कुछ वक़्त लगता है, ये वक़्त आपको देना ही होगा! पर सबसे पहले मानसिक शांति को वापस पाने के लिए थोड़ा आराम ज़रूरी है! कही थोड़ा सा घूम आये, अपने किसी मित्र से फ़ोन पर बात करके पुराने अच्छे दिन ताज़ा कर ले या तो अपनी कोई पसंदीदा फिल्म देख आये! पर निराशा के इस माहोल से बाहर निकले!
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| खुबसूरत दुनिया |
- थोड़ा बैठ के सोचे: जब आपको मन थोड़ा शांत लगे, तो इस बात पर ध्यान दे की इन परिस्थियों के लिए कही ऐसा तो नहीं की हमसे कोई चूक हो रही हो? पर ध्यान रखे, चिन्ता और चिंतन में अंतर होता है! कई बार हम लगातार मेहनत नहीं कर पाते अपने काम में, पर हमारी आशाये सफ़लता से इतने गहरी बंध जाती है की हार को पचाना और अपनी कमी को देख पाना बहुत मुश्किल हो जाता है! अगर आप कोई कमी पकड़ लेते है तो तुरन्त उसे दूर करने के उपायों में लग जाए!
- समय एक सा नहीं रहता: आप जिस भी समय से गुज़र रहे है, चाहे वो अच्छा है या बुरा! क्या वो हमेशा से ऐसा ही था? नहीं! कोई भी परिस्थिति सदा के लिए नहीं आती! इस बात का मन में भरोसा रहे की ये समय भी निकल जायेगा!
- लक्ष्य की जाचं: कई बार हम अपना लक्ष्य और अपनी सफ़लता दूसरों की इच्छाओ और आकंशाओ के आधार पर बना लेते है – पर उसे पाने के लिए जो अपने अन्दर से इच्छाशक्ति और विश्वास चाहिए होता है, वो जुटा नहीं पाते! क्योंकि सही अर्थो में तो वो कभी हमारा लक्ष्य था ही नहीं, वो तो हमपर थोपा गया, जिसे हम पूरा नहीं कर पा रहे! अगर ऐसा है तो आज ही अपना रास्ता चुने और सही मंजिल की ओर हाथ पैर मारना शुरू कर दे! क्योंकि मंजिल तक कभी ना पहुचने से अच्छा है की थोड़ी देर से ही पहुच जाए!
- तुलना करना छोड़े: अमूमन हमारे मन में आता है – “उसके भाई ने तो ये भी कर लिया और में तो कुछ भी नहीं कर पाया”, “देखो वो लड़की में साथ कि है पर आज मुझसे कितनी आगे निकल गयी”... देखिए, ये जीवन खुश रहने, परिश्रम करके आगे बड़ते जीने के लिए विधाता ने दिया है! अगर आप आगे जाने कि जगह, रूककर - इधर उधर निहारते रहेगे तो कैसे चलेगा! सबका अपना रास्ता है, सबका अपना कर्म है, और सबकी मंजिल भी अलग है!
