मन की शुद्धता | Hindi Short Story
एक संत जंगल में रहा करते थे! उनका मन सदा ध्यान-चिंतन में लगा रहता था!
कभी-कभी वो अपने शिष्यों को साथ लेकर यात्रा और तीर्थाटन पर भी निकल जाया करते थे!
एक बार की बात है, संत अपने एक शिष्य को साथ लेकर जंगल के रास्ते जा रहे थे! तभी
उन्होंने देखा की रास्ते में पड़ने वाली नदी के किनारे, एक बेहद खुबसूरत महिला बैठी
हुई रो रही थी! संत के ह्रदय में दया आ गई! उन्होंने उस महिला के पास जाकर कहा –
“बेटी, क्या बात है, किस दुःख के कारण तुम इतना विलाप कर रही हो, मुझे बताओ
तुम्हारी क्या समस्या है?” संत के हमदर्दी भरे वचन सुनकर महिला का रोना कुछ कम
हुआ!
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| मन की शुद्धता |
महिला ने कहा – “बाबा, मै नदी के उस पार एक गाँव में रहती हू और सिलाई-कढ़ाई
करके अपना गुज़ारा करती हू! पैसा कमाने के लिए मुझे जंगल के इस पार लगने वाले बाज़ार
में अपने सिले हुए कपड़े लेकर रोज़ बेचने आना पड़ता है! आज मेरा सामान देर से बिका और
मुझे सस्ते में बेचना पड़ा, इस कारण आज नदी तक पहुचने में मुझे शाम हो गई है! नदी
का तेज़ बहाव देख कर मै अब इसे पार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हू!
उधर गाँव में मेरे छोटे-छोटे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे! इसी दुःख के कारण
परेशान हू!”
महिला की बात सुनकर, संत कुछ देर के लिए शांत हो गये! फिर एकाएक संत ने महिला
से अपनी पीठ पर सवार होने को कहा और फिर तेज़ी से तैर कर नदी पार करते हुये, उस पार
जाकर उतार दिया! संत के इस उपकार से महिला गद्गद थी, उसने आसुओ से संत का
धन्यवाद किया! संत ने आशीर्वाद देकर, महिला को विदा किया!
एक साल बाद, एक दिन वो संत अपनी कुटिया में बैठे ध्यान कर रहे थे, पास ही उनका
शिष्य भी आखे बंद किये बैठा था! एकाएक शिष्य की चिल्लाहट से संत का ध्यान भंग हुआ!
शिष्य बोला – “बस, मै अब और नहीं सह सकता!” संत शांत भाव से सुन रहे थे! “आप अपनेआप
को संत कहते है? जानते भी है आप की संत कि क्या मरियादा होती है? उस दिन, आपने उस
महिला को नदी पार क्यों कराई? वो एक स्त्री थी और आपने उसको नदी के पार
पहुचाया? आप सही माइने में संत कहलाने के लायक ही नहीं है! आपका मैंने जो भी
सम्मान किया, उसके आप अधिकारी ही नहीं थे!”
ध्यानपूर्वक, अपने शिष्य के मुख से ऐसी बात सुनकर संत बोले – “उस दिन केवल कुछ
ही घड़ी में मैंने उस महिला को नदी पार कराई, क्योंकि वो कष्ट में थी,
मैंने पुत्री के समान उसका दुःख जाना, वो महिला मेरे साथ केवल कुछ ही शणौ के लिए
थी! उस दिन के बाद आज तक कभी भी मेरे मन में उसका विचार भी नहीं आया! परन्तु,
तुम्हारे मन में सोते, जागते, उठते, बैठते केवल उसी महिला का चिन्तन चल रहा था! मन
की शुद्धता सर्वोपरि है, जैसे आप अपने विचारों में सोचते हो वैसा ही आपका व्यवहार
और चरित्र बनता है! जीवन की इस यात्रा में कभी भी अपने अन्तर्मन को दूषित विचारो
से मत भरो! क्योंकि जैसा हम सोचते है, वैसे ही हम बन जाते है!”
मनुष्य जीवन में ह्रदय ही वो स्थान है जहां शांति और शुध्ता
का वास ज़रूरी है! जीवन के सफ़र में साथ चलने वाले राहगीरों के कार्यो से हमारे मन
में अशुद्ता का आगमन नहीं होना चाहिए!
संत की बात सुनकर शिष्य निरुत्तर हो गया!
