मेहनत की कमाई | Moral Story
बात 1875 के आसपास की है! कलकत्ता शहर में एक बहुत अमीर व्यापारी रहा करते थे! बचपन से
ही उन्होंने अपने अथक परिश्रम के द्वारा ढ़ेरो संपत्तियों को अर्जित कर लिया था!
इतना पैसा होने के बावजूद भी उनमे अहंकार, नाम मात्र को भी नहीं था! वो सदा गरीबों
और जरुरतमंदो की मदद को तत्पर रहा करते थे!
अमीर व्यापारी की एकमात्र संतान था उनका पुत्र, भास्कर! भास्कर घर में अकेला
होने के कारण सबका लाडला था! हर कोई भास्कर को बेहद चाहता था और उसकी हर मांग को
पूरा होने में एक पल भी ना लगता था! साल-दर-साल निकलते चले गए, इस अत्यधिक लाड-प्यार
से अब भास्कर के व्यक्तित्व में कई नकारात्मक बदलाव भी आने लगे! वो कोई भी काम ख़ुद
करने से बचने लगा, अब छोटी-छोटी आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए भी भास्कर नोकर-चाकरो
को अपनी सेवा में लगाए रखता! वो अब पूरी तरह से अकर्मठता और विलासिता की ओर जा रहा
था!
पिता का मन अपने पुत्र के भविष्य को लेकर अब चिन्तित रहने लगा, आखिर उसमे एक
सफ़ल व्यापारी बनने के कोई भी गुण अब देखाई नहीं दे रहे थे! एक दिन पिता ने भास्कर
को अपने पास बुलाया और कहा - आज से तुम्हे, घर में खाना तभी मिलेगा जब तुम कुछ
कमा के लाओगे! ये सुनकर भास्कर घबरा गया, क्योंकि उसे मेहनत करने की बिलकुल भी आदत
नहीं थी!
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| मेहनत की सफ़लता |
चिन्ता में भास्कर अपनी माँ के पास पंहुचा! माँ को भास्कर ने जब अपना दुःख
बताया तो उसे दया आ गई! उसने भास्कर को एक रुपया देते हुए कहा – तुम शाम तक कही
मित्र आदि के स्थान पर निवास करना! शाम को आकर अपने पिता को ये रुपया दे देना! काम
पर निकलने से पहले माँ ने भास्कर को भोजन कराया और दोपहर के लिए, भोजन साथ बांध
दिया! अब भास्कर के मुख पर मुस्कान लौट आई थी, जिस कारण से माँ का मन भी अब शांत
हो गया! भास्कर ने शाम को आकर पिता जी को अपना कमाया हुआ एक रुपया दिया! रुपया
देखकर पिता ने कहा – जाओ इस पास के तालाब में फेक दो और हाथ-पैर धोकर भोजन करो!
अगले कुछ दिनों तक यही प्रक्रिया चलती रही! अब माँ के पास भी महीने के खर्च
में से पैसे नहीं बचे थे भास्कर को देने के लिए! माँ की असमर्थता देखकर भास्कर ने
अपने चाचा के पास जाने का निश्चय किया और उनसे एक रुपया ले आया! ऐसा करते करते तीन
मास बीत गए! अब भास्कर अपने सभी सगे-सम्बंधियो से पैसे लाकर, तलब में फ़ेक चुका था!
एक दिन, आखिरकार सबने भास्कर को और पैसा देने से इनकार कर दिया! असहनीय भूख और
प्यास के कारण उसका मन व्याकुल हो उठा था! चाचा के घर के रास्ते में पड़ने वाली
दुकान पर भास्कर ने काम और खाना देने की गुहार लगाई! दुकान वाले को आवशकता थी तो
उसने रख लिया! उस शाम को भास्कर पिता के पास एक चवन्नी लेकर पंहुचा!
पिता ने चवन्नी देख कर फिर वही कहा – जाओ इसे पास के तालाब में फेक आओ और
हाथ-पैर धोकर भोजन करो! पिता के शब्द सुनकर भास्कर को आज क्रोध आ गया! उसने कहा –
पिता जी, आपको पता भी है इस पैसे को कमाने के लिए कितनी मेहनत लगी है, सारा दिन धूप
में सामान को सिर पर लादना पड़ा, दो बार ठोकर लगने के कारण मेरा पैर तक छिल चुका है
और आप कहते है कि इसे तालाब में फेक आओ?
भास्कर के वचन सुनकर आज पिता के मुख से शब्द ना निकल सके! आज उनकी आखों से
बहते आसुओं ने ही मानों शब्दों का स्थान ले लिया था! और ऐसा होता भी क्यों ना, आज
उनका पुत्र मेहनत की कमाई का एहसास जो कर चुका था!
